द हाॅन्टिंग मर्डर्स : पार्ट - 10
काफी देर तक उस बाॅक्स को अलट पलट कर देखने के बाद भी जब मोहित को उस बॉक्स के बाहर कवर पर कुछ भी नहीं मिला तो आखिर मोहित ने वो बाॅक्स खोल दिया।
और मोहित ने देखा कि उस बाॅक्स एक फाइल की और उस के साथ ही एक मुड़ा हुआ कागज भी शायद कोई चिट्ठी थी। मोहित ने फाइल निकाल कर भेज कर रखी और फाइल खोलने से पहले वह चिट्ठी पढ़ने लगा।
"यह रही पोस्टमार्टम रिपोर्ट, तुम ने कहा था तुम्हें भी एक कॉपी चाहिए तो बस इंतजाम करवा दिया, सोचा इतनी मदद तो कर ही सकती हूं मैं तुम्हारी क्योंकि तुम भी तो मेरी इतनी मदद कर रहे हो लेकिन एक बात कहना चाहूंगी कि मेरा नाम सामने नहीं आना चाहिए। इन सब में और जितना लिखा दिख रहा है, जरूरी नहीं है उतना ही सच हो, काफी चीज़ें अक्सर छूट भी जाती हैं, नज़रों से भी और दिमाग से भी!" - उस छोटे से सफेद कागज में सिर्फ इतना ही लिखा था।
इतना पढ़ने के बाद मोहित ने उस कागज को उलट पलट कर भी देखा, लेकिन उस कागज पर भी ना तो भेजने वाले का नाम था और ना ही पता, लेकिन फिर भी शायद मोहित जानता था कि यह किस ने भेजा है, इसलिए उस ने चुपचाप मोड़ पर वह चिट्ठी अपनी जेब में रख ली और फाइल खोल कर देखने लगा।
वो पिछली दो लाशों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की एक-एक कॉपी थी जो कि पुलिस रिपोर्ट की फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर द्वारा बनाई गई थी और जिस ने जब कल उसे बताया था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई बात सामने आई है। तब से ही मोहित को यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट चाहिए थी अपने इन्वेस्टिगेशन को आगे बढ़ाने के लिए, आखिर मौत की वजह तो पता चले और किसी चीज़ को आधार मान कर तो वह आगे बढ़ पाए।
फाइल में गौर से देखते हुए मोहित के चेहरे पर एकदम सपाट भाव थे, उस के चेहरे को देख कर तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था और ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि उसे कोई नई और इंटरेस्टिंग बात पता चली हो।
शायद उसे भी ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए कुछ देर तक उन कागजों में नजरें गढ़ाने और माथापच्ची करने के बाद शायद उसे कोई काम की चीज नहीं मिली तो वह फाइल बंद कर के वापस मेज पर पटकता हुआ बोला - "आह! बकवास, कुछ भी काम का नहीं है वही सब बातें हैं जो कि मुझे पहले से ही पता हैं।"
फिर वो वहां से उठ कर अंदर अपने रूम में चला गया और निढाल सा अपने बेड पर लेट गया, थका हुआ तो वो था ही और उस के बाद पूरी रात जगा भी, और इस वक्त सुबह के 5:00 बज रहे थे और मोहित के सोने का वक्त ही यही था इसलिए उसे जल्द ही नींद आ गई।
अगली सुबह , पुलिस स्टेशन,
"क्या हुआ सर? इतना किस बारे में सोच रहे हैं?" - मयंक उबासी लेता हुआ नीरज से बोला , उसे देख कर साफ पता चल रहा था कि वह भी रात भर सो नहीं पाया इसलिए अपना हाथ गालों पर रख कर मेज के सहारे उसी से टिक कर बैठा हुआ था।
उसी के विपरीत नीरज की दोनों आंखें खुली हुई और चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नज़र आ रही थी, उसे देख कर साफ पता चल रहा था कि वह कुछ सोच रहा है और बार-बार अपने सामने पड़ी फाइलों के पन्ने भी अलग पलट कर रहा था।
"जाओ तुम घर चले जाओ मयंक, कुछ घंटे आराम कर लेना उसके बाद वापस आ जाना।" - मयंक की तरफ एक नज़र देखते हुए नीरज उस से बोला
"अरे नहीं, सर मैं ठीक हूं।" - मयंक मना करते हुए बोला
"हां, वह तो दिख ही रहा है, कितने ज्यादा ठीक हो? - नीरज उस की नींद से भरी शक्ल और आगे देखते हुए बोला
"लेकिन सर! हमें अभी फॉरेंसिक डॉक्टर से मिलना भी तो जाना है, तीसरी लाश की रिपोर्ट आ गई होगी।" - नीरज की बात पर मयंक उसे याद दिलाते हुए बोला
"मैंने कहा ना जाओ तुम, और डॉक्टर से मिलने मैं अकेला ही चला जाऊंगा।" - नीरज ने थोड़ा सा ऑर्डर देने वाले अंदाज में कहा
"ओके सर, थैंक यू, थैंक यू सो मच!" - बोलते हुए मयंक अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और सैल्यूट करता हुआ नीरज के केबिन से बाहर चला गया।
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"क्या डाॅक्टर साहब! बस चक्कर ही लगवाएंगे क्या, हमारे पुलिस स्टेशन से लैब तक के या कुछ मदद भी करेंगे मेरी इस केस में?" - फॉरेंसिक लैब के अंदर आता हुआ नीरज फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर अनिल अग्रवाल से बोला
वह एक नॉर्मल सी दिखने वाली सरकारी फॉरेंसिक लैब थी, उस जगह की दीवारें सफेद रंग से रंगी हुई थी और अच्छी खासी रोशनी भी थी, जहां पर काफी सारे इक्विपमेंट्स के साथ ही कई सारे केमिकल्स और भी कई ज़रूरत की चीजें रखी हुई थी। बीच में एक नॉर्मल साइज का हॉस्पिटल बेड और उस पर एक अधेड़ उम्र के आदमी की लाश रखी हुई थी, उस लाश पर एक सफेद चादर पड़ी हुई थी (यह उसी तीसरे आदमी की लाश थी जिस की लाश हाल में ही उस घर के अंदर से पुलिस को मिली थी।) इस के अलावा साइड में एक टेबल पर दो कंप्यूटर भी लगे हुए थे और उन में से एक कंप्यूटर के आगे खड़ी थी एक लड़की जो कि शायद डॉक्टर अग्रवाल की जूनियर डॉक्टर या फिर उन की असिस्टेंट रही होगी।
वह अपने काम में पूरी तरह व्यस्त लग रही थी, लेकिन फिर भी नीरज के अंदर आते वक्त उस ने एक नज़र उठा कर भी उस की तरफ देखा और उसे देख कर मुस्कुराई; लेकिन जब नीरज ने उस की तरफ गौर ही नहीं किया तो वह वापस अपने काम में लग गई।
"आइए आइए इंस्पेक्टर साहब! वैसे आज आप अकेले, आप का साथी नहीं दिख रहा।" - नीरज की आवाज सुन कर उस के पीछे किसी को ढूंढती हुई नज़रों के साथ डॉ अग्रवाल ने कहा
"हां, वह मयंक को मैंने घर भेज दिया बाद में आएगा वह।" - डॉक्टर की बात का जवाब देते हुए नीरज बोला
"ओके इंस्पेक्टर साहब, ये रही इस तीसरे आदमी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट!" - डॉक्टर साहब एक फाइल नीरज के हाथ में पकड़ाते हुए बोले
"और क्या करूं मैं इस का, ले जा कर सजा लूं इसे भी अपनी डेस्क पर, पहले वाली बाकी दो रिपोर्ट्स के साथ क्योंकि काम का तो कुछ हाथ लग नहीं रहा।" - नीरज काफी निराशाजनक भाव से बोला
"अरे यार! निराश क्यों होते हो? हमेशा थोड़ी ना खाली हाथ भेजने के लिए बुलाता हूं मैं, काम की जानकारी पता लगी है।" - डॉ अनिल ने नीरज की बात सुन कर कहा तो यह बात सुन कर नीरज को थोड़ी तसल्ली हुई और उस की आंखों में एक अलग ही चमक आ गई।
उस के बाद डॉक्टर ने अपनी असिस्टेंट रोशनी को कुछ इशारा किया और वह बोली - "यस सर, फाइनल रिपोर्ट्स तैयार हैं।"
नीरज को डॉक्टर अनिल और रोशनी की इस तरह की बातें और इशारेबाजी ज़रा समझ नहीं आई तो उस ने सीधे ही पूछा - "मुझे भी कुछ बताओ आखिर किस बारे में बात हो रही है, यहीं पर खड़ा हूं मैं भी"
"हां भाई! दिख रहे हो तुम भी हमें, चलो मेरे साथ.." - बोलते हुए डॉ अग्रवाल, रोशनी के कंप्यूटर की तरफ बढ़ गए और रोशनी वहां से थोड़ा साइड हट गई।
नीरज भी आ कर डाॅ अग्रवाल के साथ ही खड़ा हो गया और उस ने भी अपनी नज़रें कंप्यूटर की स्क्रीन पर गड़ा दी लेकिन उस पर बहुत ही ज्यादा मशीनी और मेडिकल साइंस की भाषा में कुछ लिखा हुआ था जो कि उसे ज्यादा तो समझ नहीं आ रहा था लेकिन इतना साफ पता चल रहा था कि वह किसी बीमारी से जुड़ी प्रोग्रेस रिपोर्ट थी।
"यस! मेरा शक सही निकला।" - डॉ अग्रवाल टेबल पर हाथ मारते हुए बोले तो नीरज ने फिर से उन्हें शक भरी निगाहों से देखा क्योंकि उसे उस के सवालों के जवाब तो अभी भी नहीं मिले थे, डॉक्टर ने जैसे ही नीरज की तरफ देखा भी समझ गए कि नीरज क्या जानना चाह रहा है।
इसलिए डॉक्टर, नीरज की तरफ देख कर उसे समझाते हुए बोले - "मिल गया लिंक इन तीनों लाशों के बीच में, जो कब से तलाश रहे हो तुम?"
"क्या...क्या है वह लिंक जल्दी बताइए!" - नीरज ने उत्सुक होते हुए पूछा तो डॉक्टर अग्रवाल ने एक नज़र रोशनी की तरफ डाली और रोशनी ने बोलना शुरू किया - "एक्चुअली सर जब हमने पहली लाश का पोस्टमाॅर्टम किया था जब से ही हमें इस बात का शक था कि उस आदमी को कोई बीमारी भी थी...बीमारी मतलब कोई बड़ी बीमारी लेकिन पहले रिपोर्ट में वह साफ नहीं हो पाया।"
"क्यों क्लियर क्यों, नहीं आया रिपोर्ट में?" - रोशनी की बात सुनकर नीरज ने उलझन भरी निगाहों से हम दोनों की तरफ देखते हुए सवाल किया
"क्योंकि जब किसी बीमारी का इलाज चल रहा होता है और वह कुछ ठीक होना शुरू हो जाती ,है ऐसे वक्त में इंसान की डेथ हो तो जल्दी पता नहीं चलता दवाइयों के असर की वजह से।" - डॉ अनिल ने नीरज की उलझन दूर की।
"ओके तो फिर..." - नीरज ने आगे और जानने के इरादे से पूछा
"तो फिर क्या अब क्लियर हो गया कि यह जो तीनों लाशें तुम एक-एक कर के यहां लाए थे, उन तीनों में एक बात कॉमन थी और वो थी उन की बीमारी..." - डॉ अग्रवाल, नीरज की तरफ देख कर बोले और फिर चुप हो गए।
क्रमशः
Ali Ahmad
05-Mar-2022 07:48 PM
Bahut khoob
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Inayat
05-Mar-2022 01:48 AM
Nice
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Shrishti pandey
24-Feb-2022 09:06 PM
Nice
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